हापुड़। वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है. मान्यता है कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत रखकर सुहागिन महिलाएं अपने पति की तरक्की, लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जो इस बार 26 मई को है। इस दिन अमावस्या दोपहर 12:11 बजे से आरंभ होगी और अगले दिन 27 मई की सुबह 8:31 बजे तक रहेगी।
भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के ज्योतिषाचार्य पंडित संतोष तिवारी ने बताया कि सतयुग में सत्यवान की रक्षा के लिए सावित्री ने जेष्ठ कृष्ण अमावस्या में ही वट पूजन किया था, जिसके फलस्वरूप यमराज को सत्यवान के प्राणों को वापस करना पड़ा। इसलिए प्रत्येक सौभाग्यवती स्त्री को श्रद्धा के साथ इस दिन वट की पूजा करनी चाहिए। मध्यान्ह व्यापिनी त्योहार होने से वट सावित्री पूजा का समय दोपहर 12:11 बजे से ही आरंभ होगा।
उन्होंने बताया कि वट वृक्ष विशाल और लंबी आयु का वृक्ष है। इसलिए भी वट की पूजा का विशेष महत्व है। वट वृक्ष को भगवान शिव का स्वरूप माना गया है और विश्वास का प्रतीक है। वट वृक्ष के नीचे किया गया संकल्प, दान पूजा सभी अक्षय हो जाता है। अधिकांश लोग इस दिन वट वृक्ष की टहनी को तोड़कर घर लाकर पूजते हैं, जोकि गलत है। क्योंकि पुराणों के अनुसार अमावस्या में किसी वृक्ष को तोड़ना अपराध है।
वट सावित्री पूजा विधि (Vat Savitri Puja Vidhi) :
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष में जल देती हैं. उसके बाद वट वृक्ष में कलावा बांधकर तीन बार परिक्रमा करती हैं। इसके बाद सिंदूर और रोली से तिलक लगाकर पेड़ की पूजा करती हैं। वट वृक्ष के नीचे घी का दीया जलाकर, विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद पति की लंबी उम्र की प्रर्थना की जाती है। वट वृक्ष में देवी देवताओं का वास माना गया है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।