हापुड़ में नलकूप बिल घोटाले की राशि अब एक हजार करोड़ के पार पहुंच गई है, किसानों के खातों में इसे दर्शाया जा रहा है। दो दशक से चल रही जांच में अभी भी हाथ खाली हैं, क्योंकि रिकॉर्ड पूरा नहीं मिल सका है, लेजर और रसीदें गायब हैं। ऐसे में 12 हजार से अधिक किसानों की समस्या बढ़ रही है, अधिकारी भी हस्ताक्षेप से कतरा रहे हैं।
मैनुअल कार्य के दौरान वर्ष 2000 से पहले से ही घोटाला किया जा रहा था। किसानों से पैसा जमा करवाकर उन्हें फर्जी रसीदें थमायी गईं। मामला वर्ष 2004 में खुला तो कई अधिकारियों और कर्मचारियों पर गाज गिरी। कई संस्थाओं ने इस मामले की जांच की, लेकिन निष्कर्ष नहीं निकल सका। वर्ष 2019 में तत्कालीन डीएम अदिति सिंह ने शासन में पत्राचार कर, जांच शुरू कराई। जांच के दौरान रिकॉर्ड रूम खंगाले गए। बताया गया है कि करीब 19 सालों के रिकॉर्ड से 60 लेजर और 70 चालान बुक गायब हैं।
निगम के ही एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर यह आंकड़े साझा किए हैं। ऊर्जा निगम के अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2004 में जब इस घपले की परतें खुली थी तब घोटाला महज 120 करोड़ का था। इसमें 85 लाख रुपये मूल था और 35 लाख रुपये ब्याज बन रहा था। इसके बाद से हर महीने दो फीसदी चक्रवर्ती ब्याज के साथ रकम बढ़ रही है, अब घोटाले की यह राशि एक हजार करोड़ के पार पहुंच गई है।
वर्ष 2006 में ऐसे बिलों को संशोधित करने का प्रयास हुआ था। उस समय ओटीएस योजना लागू थी, बहुत से किसानों की पेनाल्टी और जुड़कर आ रही बकायेदारी को खातों से हटाया गया लेकिन, मामला बढ़ा तो फिर से अधिकारियों ने हटाई गई राशि को खातों में जोड़ दिया।
अधिशासी अभियंता आदित्य भूषण भारती- ने बताया की पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच चल रही है, समय-समय पर टीमें रिकॉर्ड भी हापुड़ से ले जाती रही हैं। इस मामले में जैसा आदेश मिलेगा, उसके अनुसार खातों को संशोधित किया जाएगा।