हापुड़। हर एक जगह की अपनी कोई खासियत होती है। हम यहां हापुड़ (Hapur) की बात कर रहे हैं, जो अपने यहां के स्वादिष्ट पापड़ों के लिए मशहूर हैं। हापुड़ में कई तरह के पापड़ बनते हैं जैसे कि मूंग दाल के पापड़, मैदे का पापड़, उड़द दाल पापड़, साबूदाने का पापड़ इत्यादि। लेकिन देशभर में मशहूर हापुड़ के पापड़ का स्वाद फास्ट फूड का चलन बढ़ने और खानपान में बदलाव के कारण फीका पड़ता जा रहा है। सौ वर्षों से अधिक पुराना पापड़ का कारोबार अब अस्तित्व बचाने को जूझ रहा है। कारोबारी की संख्या भी काफी कम हो गई है। अब सिर्फ होली और रमजान में ही पापड़ की मांग रहती है, बाकी दिनों में कारोबारियों को ग्राहकों का इंतजार करना पड़ता है।
हापुड़ में पिछले 170 वर्षों से पापड़ का कारोबार होता है। दशकों पहले शहर में पापड़ कारोबारियों की दर्जनों दुकानें थीं। फिल्म अभिनेता से लेकर राजनेता तक हापुड़ के पापड़ को पसंद करते थे। फिल्मों के डायलॉग में भी हापुड़ के पापड़ का जिक्र किया जाता था लेकिन, पिछले कुछ साल से खानपान में बदलाव के कारण पापड़ का कारोबार सुस्त पड़ता जा रहा है।
दूसरे जिलों से आने वाली बसें शहर में प्रवेश होते ही हापुड़ के मशहूर पापड़ की आवाज सुनाई देनी लगती थी। रेलवे स्टेशन पर हापुड़ के पापड़ का स्वाद विभिन्न राज्यों के यात्री चखते थे लेकिन, अब रेलवे स्टेशन पर तो पापड़ की ब्रिकी बंद हो गई है, हालांकि बसों में अभी भी हापुड़ के पापड़ की बिक्री देखी जा सकती है।
कारोबारी उड़द की दाल, मूंग की दाल, चने की चाल, साबूदाना, मैदा, चावल का पापड़ व कचरी का घरेलू हस्त निर्मित पापड़ तैयार करते हैं लेकिन, फास्ट फूड का चलन बढऩे और लोगों के खानपान में बदलाव के कारण अब पापड़ के प्रति लोगों का रुझान कम हो गया है। पहले लोग रिश्तेदारों के यहां भी पापड़ लेकर जाते थे, लेकिन उसकी जगह अब मिठाई व फलों ने ले ली है।
नगर के पापड़ वाली गली के पापड़ कारोबारी राजू पारिक का कहना है कि अब शहर में चार से पांच पापड़ की दुकानें शेष बची हैं। वह अपने पुश्तैनी पापड़ कारोबार को संभाल रहे हैं। पापड़ मिनटों में बनकर तैयार हो जाता है, लेकिन इसके बाद भी घरों में इसका चलन कम हो गया है। फिल्मों से लेकर राजनेताओं तक पंसद किया जाने वाला पापड़ कारोबार अब अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रहा है। पापड़ को पहचान दिलाने के लिए जनप्रतिनिधियों के साथ ही जिलेवासियों को नाश्ते व अन्य कार्यक्रमों में इसका चलन बढ़ाना चाहिए। जनप्रतिनिधियों को भी पापड़ कारोबार को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाने चाहिए, जिससे पापड़ को फिर सेे पहचान मिल सके।