जनपद हापुड़ में गन्ना बेल्ट में पहचान बनाने वाले हापुड़ पर विकास की रफ्तार भारी पड़ी है, तीन साल में गन्ने का रकबा करीब 4500 हेक्टेयर (करीब दस फीसदी) घटकर, 40 हजार हेक्टेयर से नीचे पहुंच गया है। वहीं, गेहूं और सरसों की चमक भी फीकी है। अधिकांश हाईवे ऐसे गांवों से होकर निकले हैं, जिनमें गन्ने का रकबा रिकॉर्ड होता था।
हापुड़ जिले में सिंभावली और ब्रजनाथपुर चीनी मिल किसानों से गन्ना खरीदती हैं। इसके अलावा मेरठ के नंगलामल, गाजियाबाद की मोदीनगर, बुलंदशहर की अनामिका चीनी मिल भी यहां से गन्ना खरीद करते थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हापुड़ का क्षेत्रफल भले ही कम हो, लेकिन गन्ना उत्पादन में जिले का नाम हमेशा अग्रणी रहा। लेकिन बीते पांच सालों में हापुड़ जिले की सीमा में कई बड़े एक्सप्रेसवे निकाले गए हैं। जिनमें गंगा एक्सप्रेसवे मुख्य है, इसमें 29 गांवों में किसानों की करीब 409 हेक्टेयर जमीन गई है।
इसके अलावा हापुड़ मेरठ, निजामपुर से बक्सर, मेरठ गढ़ रोड के चौड़ीकरण में काफी जमीन अधिग्रहित की गई। जिन गांवों में जमीन अधिग्रहित की गई, उनमें गन्ना ही मुख्य फसल था। लेकिन अधिग्रहण के बाद यहां रकबा सिमट गया, तीन सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो 4500 हेक्टेयर से अधिक गन्ने का रकबा कम हो गया है, जो चिंता का विषय है। वैकल्पिक फसलों के प्रति भी एक से दो फीसदी ही रुझान बढ़ा है। वहीं, गेहूं का रकबा भी नहीं बढ़ा सका और न ही सरसों के क्षेत्रफल में ज्यादा इजाफा हुआ। अधिकांश हाईवे ऐसे गांवों से होकर निकले हैं, जिनमें गन्ने का रकबा रिकॉर्ड होता था।
जिला गन्ना अधिकारी सना आफरीन खान- ने बताया की गन्ने का रकबा बढ़ेगा, और उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी। उत्तम प्रजाति के गन्ने की बुवाई के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं।