जनपद हापुड़ में बेसिक शिक्षा विभाग से परिषदीय स्कूलों में अध्ययनरत 46 हजार बच्चों के खातों में जूते-ड्रेस के नाम पर करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये भेज दिए हैं। लेकिन स्कूलों में बच्चे चप्पलों में आ रहे हैं, बैग की जगह कट्टे के थैले या पॉलीथिन लेकर पहुंच रहे हैं। किताबें भी पूरी नहीं हैं, फर्श पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है। ऐसे में शिक्षा व्यवस्था और अधिकारियों की सजगता पर सवाल उठ रहे हैं।
परिषदीय स्कूलों को निजी की तर्ज पर चलाने की तैयारी है। इसके लिए नवाचार, निपुण टेस्ट सहित कई क्रियाएं अपना जा रही हैं। लेकिन बच्चों की वेशभूषा देखें तो धरातल पर कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। ड्रेस, जूता, स्टेशनरी, स्वेटर के लिए हर साल बजट मुहैया कराया जाता है। इन दिनों बजट का यह पैसा सीधे बच्चों के खातों में भेजने का प्रावधान है।
प्रति बच्चा 1200 रुपये खातों में भेजे जा रहे हैं। बेसिक विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 46 हजार बच्चों के खातों में अब तक करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये भेज दिए गए हैं। शहरी क्षेत्र के स्कूलों में गांवों के मुकाबले अधिक फीसदी छात्रों को पैसे मिल गए हैं। फिर भी स्कूलों में छात्र चप्पलों में ही पहुंच रहे हैं, कई के पास चप्पल भी नहीं होती ।
सरकार भले गवर्नमेंट स्कूलों के बच्चों के लिए करोड़ों खर्च कर रही हो जिससे इनका भी स्टैंडर्ड इंग्लिश मीडियम स्कूलों की तरह हो सके। लेकिन शिक्षा विभाग सरकार की इस मंशा से इंसाफ करता नहीं दिख रहा। लापरवाही का हाल ये कि करोड़ों खर्च होने पर भी छात्रों को बैग मिले न जूते। जहां निजी स्कूल के बच्चे आकर्षक बैग लेकर चलते हैं। अभिभावक भले ही इसे देखकर अपने बच्चों को निजी स्कूलों के बच्चों से कम आंकते हों, लेकिन अधिकारियों, को इसकी तनिक चिंता नहीं है।
एडीएम न्यायिक / कार्यवाहक सीडीओ ज्योत्सना बंधु- क्क कहना है की स्कूलों में बच्चों को ड्रेस, बैग, जूते पहनकर आने के लिए खातों में डीबीटी के माध्यम से पैसे भिजवाए गए हैं। जिन स्कूलों में बच्चे बिना ड्रेस, जूते आ रहे हैं उनकी जांच कराकर उचित कार्यवाही की जाएगी। संबंधित अधिकारी से भी जवाब तलब करेंगे।