जनपद हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में सर्दी के मौसम में पाले की चपेट में आने से फसलों में काफी हद तक नुकसान की संभावना बन जाती है। फसल प्रभावित होने के चलते उत्पादन घटने पर किसानों को भारी नुकसान हो सकता है। इसलिए पाले से फसल का बचाव बेहद जरूरी है।
कृषि विभाग के वरिष्ठ प्राविधिक सहायक सतीश चंद्र शर्मा ने बताया कि सर्दी के मौसम में पडने वाला पाला पौधों समेत अन्य फसलों को बुरी तरह प्रभावित करता है। पाला पडने से पौधों की कोमल टहनियां, पत्तियां, फूल-फलियां झुलस जाती है। इससे पैदावार घटने के साथ ही कभी-कभी पौधे शत प्रतिशत मर जाते हैं।
पाले का समय लक्षण एवं पूर्वानुमान:
उत्तर भारत में मध्य दिसम्बर से फरवरी तक पाला पड़ता है। इस दौरान रबी फसलों में फूल आना व फलियाँ बनना शुरू होते है। जिस दिन विशेष ठण्ड हो शाम को हवा चलना बंद हो जाए रात्रि में आसमान साफ हो एवं आर्द्रता प्रतिशत कम हो तब उस रात पाला पड़नें की संभावना अधिक होती है। पाला हमेशा साफ मौसम में रात के चौथे पहर में पड़ता है।
पाला पड़नें के कारण:
दिसम्बर से जनवरी के महीनों में रात के समय जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या उससे नींचे चला जाता है और अचानक हवा बंद हो जाती है तो भूमि के घरातल के आसपास घास फूस एवं पौधों की पत्तियों पर बर्फ की पतली परत जम जाती है इस पतली परत को पाला कहतें है.
पाले से बचाव के लिए खेतों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके अलावा पाला पडने का पूर्वाभास होते ही एक लीटर गंधक के तनु अमल को एक हजार -लीटर पानी मे मिलाकर छिडकाव करना चाहिए। क्योंकि गंधक की तासीर गर्म होती है, इससे पौधों की ‘कोशिकाओं में पाला सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। यदि फसल पर फूल आ रहे है, तो डाई मिथाइल सल्फो आक्साइड का 78 ग्राम एक हजार लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। वहीं उन्होंने बताया कि हवा के रुख के अनुसार धुआं करने से भी पाले से बचाव संभव है, लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगाया हुआ है।