जनपद हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर सागर से निकलने वाले मोती काफी महंगे होते हैं। लेकिन किसान असली मोती घर पर ही तैयार कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। एक सच्चा मोती 300 से लेकर 15 सौ रुपये तक बिक सकता है। भारत से 47 प्रतिशत मोती विदेशों को निर्यात होता है। अनुबंध करने वाली कंपनी स्वयं किसानों से मोती खरीदती हैं।
कृषि विभाग के वरिष्ठ प्राविधिक सहायक सतीश चंद शर्मा ने बताया कि मोती कैल्शियम कार्बोनेट का रूप होता है। जो मुलायम ऊतकों वाले जीवों से पैदा किया जाता है। गोल और चिकना मोती आदर्श माना जाता है। मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल समय शरद ऋतु (अक्टूबर से दिसंबर) सबसे अच्छा समय होता है, लेकिन इसकी खेती के लिए भूमि की जगह तालाब की जरूरत पड़ती है। तालाब में शिप के माध्यम से मोती की खेती की जाती है।10 गुना 100 फुट के तालाब से लेकर एक एकड़ के तालाब में 25 से 50 हजार सीप डालकर मोती की खेती शुरू की जा सकती है।
मोती की खेती के लिए बहुत ज्यादा पैसों की आवश्यकता नहीं हैं। किसान एक एकड़ में दो लाख रुपये की शुरुआती लागत से 20 लाख रुपये तक प्रतिवर्ष कमा सकते हैं। उन्होंने बताया कि सीप को पालकर उसके अंदर से मोती निकालने की प्रक्रिया ही मोती की खेती कहलाती है। सीप बाजार से खरीदने के बाद इनमें एक शल्य क्रिया कराकर डिजाइनदार मोती भी तैयार किए जा सकते हैं। सीपों को नाइलोन के बैग में 10 दिन तक एंटीबायोटिक चारे पर रखा जाता है। प्रतिदिन इनका निरीक्षण कर मृत सीपों को हटा देना चाहिए।
सतीश चंद शर्मा ने बताया कि एक सीप 20 से 30 रुपये में मोती तैयार हो जाता है। बाजार में 20 मिलीमीटर वाले सीप के मोती की कीमत 300 से 15 सौ रुपये तक मिलती है। इसके लिए उड़ीसा, चित्रकूट समेत मेरठ में भी संस्थानों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है।