हापुड़ में सरकारी अस्पतालों में करोड़ों रुपये की लागत से बने ऑक्सीजन प्लांट तालों में कैद हैं। ऑक्सीजन प्लांट सिर्फ मॉकड्रिल के लिए खुलते है। गंभीर मरीजों को देखते ही रेफर कर दिया जाता हैं, जिस कारण ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं पड़ती।
कोरोना की तीन लहर में सैकड़ों लोगों ने जान गवाई। दूसरी लहर में ऑक्सीजन का संकट पड़ा तो सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए। जिले में एनजीओ और शासन ने 9 करोड़ रुपये खर्चकर सात ऑक्सीजन प्लांट लगवाए थे। जो देशी, विदेशी एनजीओ के सहयोग से प्लांट लगे, वार्डों तक पाइपलाइन भी बिछाई गई। कोरोना का संक्रमण खत्म होते ही इन प्लांटों को तालों में कैद कर दिया गया। अब औपचारिकता के लिए साल, छह महीने में प्लांटों का ट्रायल कर लिया जाता है। लेकिन यह पूछने वाला कोई नहीं है कि प्लांटों को चलाकर मरीजों को सेवाएं क्यों नहीं दी जाती।
हापुड़ के सीएचसी और जिला अस्पताल में आने वाले गंभीर मरीजों को रेफर करना ही विकल्प होता है। इसलिए गंभीर मरीज यहां आते ही कम हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि जरूरत के संसाधन समय पर मिलेंगे ही नहीं। जिस कारण ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं पड़ती। सबसे अधिक स्टॉफ वाले विभाग की सेवाएं बदहाल हैं।
सीएमओ डॉ. सुनील त्यागी- ने बताया की सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाएं बढ़ी हैं, मरीजों को भर्ती करने के साथ ऑपरेशन भी किए जा रहे हैं। ऑक्सीजन प्लांटों को समय समय पर चलाकर देखा जाता है, जरूरत पड़ने पर मरीजों को इन्हीं से ऑक्सीजन मिलेगी।