हापुड़ शहर में पिछले कुछ महीने से हापुड़ के हवा की गुणवत्ता सुधार अब बिगड़ता जा रहा है। पिछले 15 दिनों में ही हापुड़ का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 70 से 252 तक पहुंच गया है। जिस गति से यह बढ़ रहा है, उससे आने वाले दिनों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वहीं जिले में ग्रेप एक अक्तूबर से लागू हो गया है, लेकिन जिले में ग्रेप की पाबंदियों का असर दिखाई नहीं दे रह है। जगह-जगह कूड़ा जलाया जा रहा है, निर्माण सामग्री खुले में पड़ी है और नगर पालिका द्वारा कहीं भी जल का छिड़काव नहीं किया जा रहा है।
हापुड़ शहर की बात करें तो बुलंदशहर रोड पर शुक्रवार सुबह से कूड़े के ढेर में धुआं उठता रहा। कूड़े के ढेर में धुआं उठता रहा जिससे आने जाने वालों को दिक्कत हुई। आने जाने लोगों को यह धुंआ दिखा और उन्होंने इसकी फोटो मीडिया व संबंधित विभागों से शेयर की। सड़कों के किनारे निर्माण सामग्री खुले में पड़ी है और औद्योगिक क्षेत्रों में पूराने तरीके से ही जनरेटर चल रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों से प्रदूषण का स्तर बेहद नीचे था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर एक्यूआई 50 से 70 के बीच चल रहा था। इसके चलते लोगों ने शुद्ध हवा में सांस लिया था। लेकिन, अब इसके स्तर में लगातार बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई। अब हालात यह हैं कि हापुड़ का एक्यूआई स्तर ऑरेंज श्रेणी में पहुंच गया है। इसके अलावा पीएम 2.5 का स्तर भी बढ़कर 310 और पीएम 10 का स्तर बढ़कर 181 तक पहुंच गया है। यदि प्रदूषण को रोकने के लिए लोगों ने कदम नहीं उठाए तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। सांस के मरीजों की परेशानी बढ़ जाएगी और अस्पतालों में मरीज बढ़ेंगे।
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. हरिओम सिंह- ने बताया की फिलहाल जो एक्यूआई चल रहा है इतना तक लोग झेल सकते हैं लेकिन, इससे अधिक प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तो सांस के मरीजों के साथ-साथ बच्चों और बुजुगों को दिक्कत बढ़नी शुरू हो जाएगी। अधिक परेशानी हृदय और सांस के मरीजों को होती है। इसके अलावा नवजात शिशु और गर्भवती महिलाओं को भी शुद्ध ऑक्सीजन की अवश्यकता होती है।