जनपद हापुड़ में अंग्रेजी हुकूमत की लंबी गुलामी झेलने के बाद आजादी की रात का हापुड़ में जश्न इतिहास की किताबों में दर्ज है। अंग्रेजों की भगदड़ के बाद आजादी की महक फूटनी शुरू हुई तो यहां जश्न शुरू हो गए। जश्न के लिए दिन में गठित कमेटी ने आनन फानन में पूरी तैयारियां कर ली थीं।
गैस लालटेन की रोशनी से पूरा शहर नहा गया और गोलों की आवाजों से आसमान गुंजायमान हो गया। आजादी के जश्न की यह कहानी स्वतंत्रता सैनानी रिचपाल सिंह त्यागी द्वारा वर्ष 1975 में लिखी पुस्तक हापुड़ का स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
रिचपाल सिंह त्यागी ने इस पुस्तक में बताया है कि 14 अगस्त की रात 12 बजते ही जैसे ही 15 अगस्त का आगाज हुआ, तो जश्न शुरू हो गया। हापुड़ नगर पलिका टाउन हाल कार्यक्रम का केंद्र था। रात में हर नगर को दुल्हन की तरह सजाया गया। शहर में 62 द्वार बनाए गए थे और मुख्य स्थानों पर 150 तिरंगे फहराए गए थे। इसके अलावा 24 मंदिरों पर भी तिरंगा लहराने के लिए चिन्हित किया गया था। रात के 12 बजते ही टाउन हाल में जमा लोगों के उत्साह का ठिकाना नहीं था।
कार्यक्रम के लिए 40 गैस के हंडों की व्यवस्था की गई थी। ठीक 12 बजे आजादी की घोषणा की तो 62 गोलों की आतिशबाजी के साथ शुरू हुआ जश्न पूरी रात चलता रहा। वंदे मातरम, भारत माता की जयकारों के साथ पूरी रात गीत गाये गए। हर तरफ तिंरगा लहरा रहा था।
समाजसेवी और कविडा अशोक मैत्रेय बताते हैं कि रात भर चले जश्न के बाद सुबह कैसी होगी उसका अंदाजा लगाया जा सकता है। शहर के सभी मंदिरों में लोग पूजा अर्चना के लिए एकत्र हुए भगवान धन्यवाद दिया और मंदिरों में शंख और घड़ियाल गूंजे। सामूहिक रूप से शंखों की आवाज से पूरा वातावरण गूंज उठा।