हापुड़। होली के एक दिन पहले पूर्णिमा की तिथि में होलिका दहन किया जाता है। बृहस्पतिवार को भद्रा के कारण रात्रि 11:27 बजे के बाद होलिका दहन होगा। वहीं 14 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी।
होलिका दहन, जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है। होली के एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है। जिसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। होली के दिन सभी मिलकर एक दूसरे को रंग, अबीर और गुलाल लगाते हैं।
भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा परामर्शकर्ता पंडित संतोष तिवारी ने बताया कि बृहस्पतिवार को पूर्णिमा सुबह 10:36 बजे से प्रारंभ होकर शुक्रवार को दोपहर 12:24 तक रहेगी। होलिका पूजन पूर्णिमा लगने के बाद अर्थात सुबह 10:36 बजे से सायं प्रदोष काल तक पूजा की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10:36 बजे से पृथ्वीलोक की अशुभ भद्रा भी आरंभ होगी जो रात्रि 11:27 बजे पर समाप्त होगी। निर्णय सिंधु व धर्म सिंधु के अनुसार भद्राकाल में होलिका दहन करना अशुभमाना जाता है। ऐसे में भद्रा समाप्ति के बाद दहन करना शुभ होगा, होलिका दहन पूर्णिमायुक्त और भद्रारहित शुभ समय रात्रि 11:27 बजे से श्रेष्ठ रहेगा। रंगोत्सव की होली 14 मार्च शुक्रवार को मनेगी।
होलिका दहन और पौराणिक कथाएँ :
होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत एक पौराणिक कथा से जुड़ी है। यह कथा प्रहलाद और होलिका की है। प्रहलाद, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे, उनके पिता हिरणकशयपु ने अपने बेटे के विष्णु भक्ति के कारण उसे मारने की कई बार कोशिश की। एक दिन होलिका, जो आग से अछूत थी, प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रहलाद बच गए। इस घटना को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है और इसे होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है।