हापुड़ के गढ़-ब्रजघाट में करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक गंगा का पानी भी लापरवाही और सिस्टम की नाकामी के कारण दूषित हो गया है। जानकर हैरानी होगी कि गंगा का पानी अब आचमन तो क्या डुबकी लगाने योग्य भी नहीं रह गया है। गढ़-ब्रजघाट में गंगा जल की स्थिति पिछले पांच माह से सी श्रेणी में है। यह तब है जब जनवरी माह में माघ मेले के लिए सतर्कता बरती जा रही है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गंगा की अपस्ट्रीम और डाउन स्ट्रीम दो स्थानों से नमूने लिए जाते हैं। नवंबर माह की जांच रिपोर्ट के साथ पिछले अक्तूबर, सितंबर, अगस्त, जुलाई में भी गंगा का पानी सी श्रेणी में रखा गया है। केवल मई माह में ही यह बी श्रेणी में था। जिसका अर्थ है कि गंगा का पानी नहाने योग्य है, लेकिन आचमन करने योग्य नहीं, जबकि सी श्रेणी में यह अत्यधिक दूषित हो जाता है। लॉकडाउन की बात करें तो इस दौरान अप्रैल माह में गंगा का पानी बी श्रेणी में था, लेकिन उसके बाद सिर्फ अक्टूबर माह में पानी बी श्रेणी में था। लॉकडाउन के दौरान उद्योग बंद थे। गंगा में स्नान समेत तमाम तरह की गतिविधियां बंद हो गईं थीं, लेकिन अब जैसे-जैसे अनलॉक शुरू हुआ तो गंगा जल की गुणवत्ता खराब होती चली गई। गंगा को साफ कराने के नाम पर चलाए जा रहे अभियान और दावे केवल कागजी दिखाई दे रहे हैं।
ब्रजघाट और गढ़ में 40.68 करोड़ की लागत से दो एसटीपी बनने के बावजूद गंगा में 23 नालों का दूषित पानी गिर रहा है। तकनीकी खामी और लापरवाही की वजह से सालों से ये प्लांट लगभग बंद हैं। गढ़ के नयाबांस में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत ब्रजघाट में दो एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) 40.68 करोड़ की लागत से 2011 में बनाए गए थे। दोनों प्रोजेक्ट संचालित करने की जिम्मेदारी जयपुर की संस्था आनंदी लाल लालपुरिया को दी गई थी। लेकिन अब इनका संचालन नहीं हो रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी विकास मिश्रा का कहना है कि गंगा में दूषित पानी गिरने पर पूरी तरह रोक है। जिसका पालन कराया जा रहा है। समस्या का समाधान निकालने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।