हापुड़ में आद्रता वाले मौसम में कानों में फंगल इंफेक्शन बढ़ रहा है। इससे सुनने की क्षमता प्रभावित होने के साथ ही पर्दे तक छलनी हो रहे हैं। ईएनटी विभाग की ओपीडी में मरीजों की संख्या दो सप्ताह में ढाई गुनी बढ़ गई है।
ईएनटी रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक आनंद ने बताया कि कान में संक्रमण की समस्या के मामले इन दिनों अधिक रिपोर्ट किए जा रहे हैं। मानसून की उच्च आद्र्रता और नम वातावरण के कारण फंगल संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है, कानों में होने वाले संक्रमण की स्थिति काफी असहज करने वाली हो सकती है, अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो ये काफी असुविधाजनक स्थितियों का कारण हो सकती है।
गंभीर स्थितियों में कानों में होने वाले संक्रमण की स्थिति सुनने की क्षमता को भी प्रभावित करने वाली हो सकती है, जिसको लेकर सभी लोगों को निरंतर ध्यान देते रहने की आवश्यकता है। कानों में होने वाला संक्रमण बैक्टीरियल या फंगल दोनों प्रकार का हो सकता है। संक्रमण, कान के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। बरसात के मौसम में आद्र्रता के स्तर में वृद्धि के कारण कानों में बैक्टीरिया और फंगस के पनपने का जोखिम काफी अधिक माना जाता है।
संक्रमण के अन्य कारण फ्लू और एलर्जी भी हैं। इन स्थितियों के कारण गले के साथ-साथ नाक और मध्य कान के हिस्से में जमाव और सूजन हो सकती है। जब कान में तरल पदार्थ जमा होने लगता है, तो यह भी कान में संक्रमण का कारण बनता है। मरीज कान चीसना, बहना, शुष्क होने जैसी समस्याएं लेकर पहुंच रहे।
कानों में फंगल इन्फेक्शन को ऑटोमायकोसिस कहते हैं। बरसात में ऑटोमायकॉसिस होने का खतरा अधिक रहता है। कान के इन्फेक्शन पर हम ध्यान नहीं देते हैं, जबकि इसे लाइलाज छोड़ना व्यक्ति को बहरा बना सकता है।
फंगल इन्फेक्शन की वजह से कान में दर्द और खुजली होती है। ऐसा होने पर ज्यादातर लोग कान में माचिस की तिल्ली या अन्य औजार को कान में डालकर खुजलाते हैं। इससे संक्रमण बढ़ जाता है। कान में फंगल इन्फेक्शन उन लोगों में अधिक देखने को मिलता है जो गर्म और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं। पानी से संबंधित खेलों में भाग लेने वाले एथेलीट में भी ऑटोमायकोसिस हो सकता है।