जनपद हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर के तापमान में गिरावट के साथ ही पाला गिरने से सब्जियों का राजा आलू मुश्किल में आ गया है। पौधों की पत्तियों पर पछेती झुलसा का प्रकोप दिखाई दे रहा है। झुलसा रोग ने इसी तरह से पौधों को चपेट में लेना बरकरार रखा तो, असर आलू की पैदावार पर भी पड़ेगा।
सर्दियों के मौसम में वैसे तो कई फसलों पर पाले का असर दिखाई देने लगता है, लेकिन आलू की खेती करने वाले किसानों को चिंता कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाती है। तापमान में गिरावट से किसानों को आलू की फसल पर पाला के प्रकोप की चिंता सताने लगी है। बदलते मौसम से सबसे अधिक आलू की फसल को ही नुकसान होता है, जबकि खेती को कम नुकसान पहुंचता है।
इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है जिसके चलते कोहरा और पाले से आलू की फसल को लेकर किसान चिंतित है। करीब दो महीने की हो चुकी आलू की फसल के अनुरूप मौसम का मिजाज नहीं बन पा रहा। बुवाई के दिनों में तापमान अधिक था। सिंचाई के जरिए किसानों ने खेतों में नमी कम नहीं होने दी। इसके बाद करीब एक सप्ताह से दिन में तो तापमान सामान्य रहा लेकिन, रात में नमी के साथ पाला गिरना शुरू हुआ, तो पछेती झुलसा ने फसल को चपेट में लेना शुरू कर दिया है। हालांकि अभी पछेती झुलसा के प्रकोप की शुरूआत ही है।
किसान जगपाल यादव ने बताया कि जो पौधे पछेती झुलसा की चपेट में आ चुके हैं, उनके पत्ते पहले तो भूरे रंग के नजर आए, फिर पत्ते काले पड़ने लगे हैं। आगे चलकर आलू के डंठल (तना) सड़ने के कगार पर पहुंच सकते हैं। इसके बाद पूरा पौधा नष्ट हो जाता है। यह सब पाला पड़ने के कारण हो रहा है।
दरअसल, पछेती झुलसा पौधे दर पौधे एक के बाद दूसरे को चपेट में ले लेते हैं। इस संबंध में किसान कृषि विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से भी संपर्क कर रहे हैं।
कृषि विभाग के वरिष्ठ प्राविधिक सहायक सतीशचंद्र शर्मा ने बताया कि जो पौधे झुलसा रोग की चपेट में आ चुके हैं, उन्हें तत्काल हटा देना चाहिए। इसके अलावा बाजार में दवाइयां भी उपलब्ध हैं, विशेषज्ञ की सलाह से दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।