हापुड़। जिले में बाल श्रम की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है। श्रम विभाग की तमाम कार्यवाहियों और जागरूकता अभियानों के बावजूद बच्चों को दुकानों, फैक्टरियों और सड़कों पर काम करते देखा जा सकता है। पिछले तीन वर्षों में 412 बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाई गई है, जबकि 275 प्रतिष्ठानों के खिलाफ कार्यवाही कर न्यायालय में वाद दाखिल किया गया। इनमें से 68 प्रतिष्ठानों से जुर्माना भी वसूला गया।
सड़कों और बाजारों में अब भी दिखते हैं बाल श्रमिक
शहर की गलियों, बाजारों और रेहड़ी-पटरी तक पर बच्चों से मजदूरी कराई जा रही है। कई बच्चे कूड़ा बिनने जैसे जोखिम भरे काम में भी लगे हुए हैं। यह स्थिति तब है जब प्रशासनिक अधिकारी रोज़ इन्हीं सड़कों से गुजरते हैं, लेकिन बाल श्रम पर कोई स्थायी रोक नहीं लग पा रही।
बाल श्रम रोकने का उद्देश्य बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ना और उन्हें बेहतर शिक्षा देकर समाज के योग्य बनाना है, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट नज़र आ रही है।
आधी संख्या को स्कूलों में दाखिल कराया गया
श्रम विभाग के अनुसार, जिन बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया है, उनमें से करीब 50 प्रतिशत बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराया गया। कई बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी थी, जिन्हें दोबारा शिक्षा से जोड़ा गया।
इसके साथ ही इन बच्चों को बाल श्रम, पुष्टाहार और अन्य विभागीय योजनाओं का लाभ भी दिलाया गया है। फिर भी आंकड़ों में कोई खास गिरावट नहीं दिख रही है।
निरीक्षण बढ़े तो सामने आए अधिक मामले
सहायक श्रमायुक्त सर्वेश कुमारी ने बताया कि लगातार तीन वर्षों में विभाग ने निरीक्षणों की संख्या बढ़ाई, जिससे बाल श्रम के ज्यादा मामले सामने आए। इसके बाद सख्त कार्रवाई करते हुए बच्चों को मुक्त कराया गया और उनकी शिक्षा तथा पुनर्वास की व्यवस्था की गई।
“हमारी प्राथमिकता बच्चों को बेहतर भविष्य देना है। लेकिन समाज के सहयोग के बिना यह संभव नहीं। हर नागरिक को जागरूक होना होगा, तभी बाल श्रम पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है।”
— सर्वेश कुमारी, सहायक श्रमायुक्त
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