हापुड़। शिक्षा के अधिकार की बात करने वाले तंत्र की पोल तब खुल जाती है जब बच्चों को खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। जिले के कई प्राथमिक, कंपोजिट और जूनियर स्कूल ऐसे हालात से जूझ रहे हैं, जहां न सिर्फ कक्षाएं बल्कि शिक्षकों के कार्यालय तक जर्जर हो चुके हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग की करोड़ों की योजनाएं धरातल पर अधूरी और निष्प्रभावी साबित हो रही हैं। छतों से झड़ता प्लास्टर, बरसात में टपकता पानी, और गिरते मलबे के डर से शिक्षक अब बच्चों को खुले में पढ़ाने के लिए मजबूर हैं।
🚨 सर्वे के बाद भी नहीं सुधरे हालात
हर साल शैक्षिक सत्र की शुरुआत से पहले स्कूलों का सर्वे कर जर्जर भवनों की रिपोर्ट तैयार की जाती है। तकनीकी टीम द्वारा चिन्हित 11 स्कूल भवनों की नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन मरम्मत या नए भवन का निर्माण अभी अधर में है।
“प्रधानाध्यापकों से जर्जर स्कूलों की सूची मांगी गई है। विभागीय स्तर पर मरम्मत के प्रयास जारी हैं।”
— रितु तोमर, बीएसए, हापुड़
🛠️ शौचालयों की स्थिति भी चिंताजनक
केवल भवन ही नहीं, स्कूलों के शौचालय भी बदहाल हैं। कई स्कूलों में शौचालय उपयोग के लायक नहीं हैं, जिससे बालिकाओं की उपस्थिति पर भी असर पड़ रहा है।
👇 जमीनी हकीकत के कुछ दृश्य:
- बच्चों की कक्षाएं खुले मैदान में लग रही हैं
- छतों से हर दिन झड़ता प्लास्टर, गिरने का खतरा
- शिक्षकों के ऑफिस में भी बैठना असुरक्षित
- शौचालय टूटे, नालियां जाम, पीने का पानी अस्वच्छ
📣 प्रश्न जो उठते हैं:
- क्या सर्वे के बाद भी फंड आवंटन और मरम्मत में देरी जायज़ है?
- क्या बच्चों की सुरक्षा से बड़ा कोई मुद्दा हो सकता है?
- क्यों नहीं हो पा रही समय पर मरम्मत और पुनर्निर्माण?