जनपद हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में शिक्षण संस्थानों में नए शैक्षिक सत्र का शुभारंभ हो चुका है। बस्ते के बोझ तले नौनिहालों का बचपन दब रहा है। ऐसे में बस्तों के बढ़े बोझ से नौनिहालों को दोहरा नुकसान झेलना पड़ रहा है। बस्तों के बोझ तले बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सही ढंग से नहीं हो पा रहा है।
पांच दशक पहले पहली से पांचवीं कक्षा के विद्यार्थियों पर इतना बोझ नहीं था। मसलन पहली कक्षा के लिए एक किताब और दूसरी के लिए दो और तीसरी के लिए तीन, चौथी, पांचवीं के लिए चार किताबें और कापियां होती थीं। इतना ही नहीं, हर कक्षा के लिए स्तर के हिसाब से पहाड़े तथा गणित के प्रश्न होते थे। इसके साथ-साथ व्यवहारिक गणित, लाभ-हानि, ब्याज व समीकरण के प्रश्न होते थे. लेकिन आज व्यवहारिक पाठ्यक्रम के ज्ञान और शिक्षा से भी बच्चों को वंचित होना पड़ रहा है।
सीएचसी प्रभारी डॉ. दिनेश भारती ने बताया कि बस्ते के बोझ तले नौनिहालों का बचपन दब रहा है। अब हालात ऐसे हो चले हैं कि भारी बैग के दबाव के कारण बच्चे गर्दन और पीठ दर्द का शिकार भी हो रहे हैं। 12 साल की आयु के बच्चों को भारी स्कूली बस्तों की वजह से पीठ दर्द का खतरा पैदा हो गया है। पहली कक्षा में ही बच्चों को छह पाठ्य पुस्तक और कापियां दी जाती हैं। जिससे पांचवीं कक्षा तक के बस्तों का बोझ करीब आठ किलो हो जाता है। इससे बच्चों के पीठ, घुटने व रीढ़ पर असर पड़ रहा है।
आजकल बहुत सारे बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं। इसलिए बच्चों को भारी बोझ न उठाने दें। छोटी उम्र में भारी बोझ उठाने से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर रोक लग जाती है। घर से भारी स्कूल बैग का बोझ और स्कूल से होम वर्क को अधिकता से शिशु दिमाग का विकास बाधित हो रहा है।