हापुड़ के तापमान में गिरावट और प्रदूषित वातावरण बच्चों में निमोनिया व एलर्जी की समस्या खड़ी कर रहा है। सर्दी, प्रदूषण बढ़ने की वजह से बच्चे निमोनिया की चपेट में हैं। इनके कारण हर सप्ताह दो व्यस्क मरीज व 10 बच्चे जिला अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। निजी अस्पतालों में भी 100 से अधिक बच्चे निमोनिया व एलर्जी की समस्या वाले आ रहे हैं। ओपीडी में सबसे ज्यादा केस एलर्जी के हैं। जिला अस्पताल और सीएचसी में एलर्जी से पीड़ित बच्चो को इनहेलर दिया जा रहा है।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. समरेंद्र राय ने बताया कि एलर्जी के मरीजों के चेस्ट एक्स-रे स्पष्ट आ रहे। इससे माता-पिता को लगता है कि बच्चे को कोई समस्या नहीं है। जबकि चिकित्सकों का मानना है कि निमोनिया व एलर्जी में यही अंतर है। निमोनिया वाले बच्चों के चेस्ट एक्स-रे में धब्बे अलग ही दिखाई देते हैं। जबकि एलर्जी में ऐसा नहीं होता, क्योंकि यह समस्या सांस की नली से संबंधित है। जिला अस्पताल में निमोनिया से पीड़ित बच्चों को इंजेक्शन व एलर्जी से पीड़ित बच्चों को इनहेलर थैरेपी दी जा रही है। इससे कई अभिभवक घबरा रहे है, जबकि डॉक्टरों का कहना है कि एलर्जी के इनफेक्शन के मामले में इनहेलर से अच्छी कोई दवा नहीं है। यह सीधे सांस की नली पर असर करती है।
बाल रोग विशेषज्ञ का कहना है कि खांसी व ठंड लगकर बुखार आना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द, थकान और कमजोरी, तेजी से सांस लेना आदि निमोनिया के लक्षण हैं। एलर्जी के मामले में खांसी व सांस लेने में परेशानी ज्यादा होती है। जिला अस्पताल और सीएचसी के बच्चा वार्ड में बीमारों को भर्ती कराया जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि दो से तीन दिन भर्ती रखने के बाद बच्चों को छुट्टी दे दी जाती है। इस मौसम में बच्चों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है।
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. योगेश गोयल ने बताया कि ओपीडी में सबसे ज्यादा केस एलर्जी के हैं। कुछ बच्चों को भर्ती भी किया गया है। ढाई माह से पांच साल तक के बच्चे एलर्जी व निमोनिया से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि लोगों में भ्रांति है कि बच्चे को हर बार सर्दियों में निमोनिया हो जाता है।