हापुड़/गढ़मुक्तेश्वर। गढ़-अमरोहा लोकसभा क्षेत्र के अलग अलग स्थानों पर रहने वाले बागड़िया समाज के लोगों के पास घर है ना कोई ठिकाना। आज यहां तो कल दूसरी जगह डेरा जमा लेते हैं। समय-समय पर सड़क चौड़ीकरण अभियान हो या अतिक्रमण हटाया जाए, इनके कच्चे आवास हटा दिए जाते हैं। बागड़िया समाज के लोग आज भी सरकारी योजनाओं से वंचित है।
लोकसभा क्षेत्र के नगर के नक्का कुआं रोड़, सिंभावली, बक्सर, भोवापुर, ढाना, सदरपुर, डेहरा कुटी, हसनपुर, गजरौला, धनौरा, अमरोहा आदि स्थानों पर बागडिया समाज के लोगों को स्थाई ठिकाने की तलाश है। इन लोगों की जिंदगी मुसाफिरों की तरह होती है, जबकि इनका अंत बीच सफर में होता है। इनमें से कोई दिल्ली से तो राजस्थान से है। जो लोकसभा क्षेत्र के अलग- अलग थाना क्षेत्रों में बस गए हैं। कई सरकारें आई और गई, लेकिन इन्हें समाज की मुख्यधारा से आज तक नहीं जोड़ा जा सका।
लोकसभा क्षेत्र में समाज के लगभग 500 परिवार रहते हैं। जिनकी सदस्य संख्या लगभग 25 सौ से 3 हजार है। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर माटी की कुटियां बना ली हैं। इन स्थानों पर जब कभी सड़क निर्माण समेत अन्य विकास कार्यों की शुरुआत होती है तो उन्हें खदेड़ दिया जाता है। इसके बाद अपना बसेरा दूसरी जगह बसा लेते हैं। पिछले कुछ समय से स्थानीय प्रशासन उनके प्रति जिम्मेदार हुआ है। इसके चलते समाज के लोगों के लगभग 1800 वोट भी बन गए हैं। यह लोग हर बार विधान सभा, पालिका, ग्राम प्रधान, लोकसभा के चुनाव में मतदान कर अपना जनप्रतिनिधि चुनते है।
लेकिन सरकार द्वारा चलाई जा रही महत्वकांक्षी योजनाओं से यह लोग आज भी काफी दूर हैं। बुजुर्गों का कहना है कि जब चुनाव आते हैं तो कई प्रत्याशियों उनके पास भी वोट मांगने आते हैं। उसके बाद उनका हाल जानने कोई नहीं आता। खुले में स्नान, शौच के लिए मजबूर हैं। न बिजली कनेक्शन मिला, न पेंशन मिली। राशन तक का लाभ भी नहीं मिल रहा हैं। आजीविका के नाम पर परिवार के सदस्य छैनी, हथौड़े, कद्दूकस आदि सामान बनाकर बेचने के लिए मजबूर हैं।