हापुड़ में टाइफाइड के 14 फीसदी मरीजों पर एंटीबॉयोटिक दवाएं असर नहीं कर रहीं। दो सप्ताह बाद भी ऐसे मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है। स्वास्थ्य विभाग ने 100 मरीजों के सर्वे में खुलासा किया है। मरीजों को अब तीन तीन एंटीबॉयोटिक दवाएं एक साथ खिलायी जा रही हैं, खुराक लेने की अवधि भी बढ़ायी है। ऐसे मरीजों को स्वस्थ करने के लिए अब तीन एंटीबॉयोटिक दवाएं दी गई हैं, साथ ही खुराक दिन में तीन से चार बार खिलायी जा रही हैं।
सीएचसी हापुड़ के फिजिशियन डॉ. अशरफ अली ने बताया कि ओपीडी में हर रोज आठ से दस मरीज टाइफाइड पॉजिटिव आते हैं। इनमें बहुत से मरीज ऐसे थे, जिनकी दवाओं का कोर्स चले दो सप्ताह बीत गए, फिर भी बुखार नहीं उतरा। 100 मरीजों पर रिसर्च की, जिसमें 14 मरीजों में चौकाने वाले लक्षण सामने आए।
अधिकांश मरीज पहले झोलाछापों से दवाएं ले चुके थे, जिन्हें एंटीबॉयोटिक दवाओं की ओवरडोज दी गई थी। बीच में ही बार बार दवाएं छुड़वा भी दी गईं।सीएचसी में शुरूआत में दो सप्ताह तक ऐसे मरीजों को दो दो एंटीबॉयोटिक दवाएं दी गईं,जोकि टाइफाइड में दी जाती हैं। लेकिन दो सप्ताह बाद भी टाइफाइड की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी। मरीजों को अब तीन तीन एंटीबॉयोटिक दवाएं एक साथ खिलायी जा रही हैं, खुराक लेने की अवधि भी बढ़ायी है।
फिजिशियन डॉ. अशरफ अली ने बताया कि अब तक टीबी के मरीज मल्टी ड्रग प्रतिरोध (दवाओं का काम न करना) में शामिल किए जाते थे। लेकिन अब टाइफाइड के मरीज भी इस श्रेणी में हैं, जिन पर एंटीबॉयोटिक काम नहीं कर रही।
टाइफाइड का बुखार साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया के कारण फैलता है। जिसे नियंत्रित करने के लिए मरीजों को एंटीबॉयोटिक की जरूरत होती है। सरकारी अस्पतालों से मरीजों को तीन एंटीबॉयोटिक दवाओं में सिप्रोफ्लोक्सासिन, सेफ्ट्रिएक्सोन, अजिथ्रोमाइसीन दी जाती हैं। अमूमन दो एंटीबॉयोटिक ही टाइफाइड के मरीजों को पर्याप्त होती थी, जोकि अब तीन देनी पड़ रही हैं।
सीएमओ डॉ. सुनील त्यागी- ने बताया की बुखार होने पर सरकारी अस्पतालों में जांच कराकर उपचार शुरू कराएं। झोलाछाप गलत दवाएं देकर स्वास्थ्य बिगाड़ देते हैं, इसलिए इनके चक्कर में न आएं। अस्पतालों में निशुल्क जांच और उपचार की सुविधा है।