जनपद हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में भुगतान में देरी और पर्ची किल्लत दूर न होने से आर्थिक तंगी का सामान कर रहे गन्ना उत्पादक किसानों के लिए एलोवेरा की खेती एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरने के साथ ही कर्ज से भी मुक्ति मिल पाएगी।
एलोवेरा का प्रयोग सौंदर्य उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन समेत खाने पीने के हर्बल उत्पादों में होता है, लेकिन अब इसकी मांग कपड़ा उद्योग में भी बढ़ती जा रही है। कृषि विभाग के वरिष्ठ प्राविधिक सहायक सतीश चंद्र शर्मा ने बताया कि एलोवेरा की खेती से किसानों को एक एकड़ में पांच से लेकर सात लाख रुपये तक आमदनी होती है, जो गन्ना, धान समेत गेहूं के मुकाबले कहीं अधिक है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने के मकसद से विभिन्न नामी कंपनियां किसानों से कांट्रेक्ट बेस पर खेती करा रही हैं, जो एलोवेरा की पत्तियां अच्छे दाम में खरीदती हैं।
सतीश चंद्र का कहना है कि एलोवेरा की पौध राजस्थान से तीन-चार रुपये के रेट में मिलती है और एकड़ में करीब 16 हजार पौधे लगते हैं, जिनकी देखरेख में करीब एक लाख तक का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि दूसरी फसलों में जंगली जानवर काफी नुकसान कर देते हैं, लेकिन एलोवेरा की खेती उनसे पूरी तरह सुरक्षित रहती है।
मौजूदा वक्त में आयुर्वेदिक और इम्युनिटी बढ़ाने वाले प्रोडक्ट की डिमांड काफी है। वहीं बात चाहे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट की करें या आयुर्वेदिक दवा की, एलोवेरा का इन सभी में काफी इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि बाजार में इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है। एलोवेरा यह एक अंग्रेजी नाम है, हिंदी में इसे घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से जानते हैं। एलोवेरा की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि आप सिर्फ एक बार पौधे लगाकर इससे कई साल तक उपज लेने के साथ ही मुनाफा कमा सकते हैं।
अच्छी पैदावार के लिए एलोवेरा के पौधे जुलाई-अगस्त में लगाना उचित रहता है। एलोवेरा की खेती सर्दियों के महीनों को छोडक़र पूरे साल की जा सकती है।वहीं इसके पौधों को खरीदते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि पौधे बिल्कुल स्वस्थ हों. खरीदा गया पौधा 4 महीना पुराना होना चाहिए, जिसमें 4 से 5 पत्तियां लगी होनी चाहिए। रोपाई के दौरान एलोवेरा के पौधों के बीच में 40-45 सेमी की दूरी अवश्य रखें. दरअसल, पौधों को दूरी पर लगाने से पत्तियों के तैयार होने पर उनकी तुड़ाई करने में आसानी होती है।