हापुड़। रोजे का मकसद सिर्फ भूखा, प्यासा रहना नहीं है। यह सब्र और हमदर्दी का महीना है और सब्र का बदला जन्नत है। रोजा रखने वालों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। इस्लाम की बुनियादी चीजों में से रोजा एक है। रोजा अच्छे काम के लिए प्रेरित करता है और बंदे के अंदर दूसरों के साथ हमदर्दी का जज्बा पैदा करता है।
नौवां महीना रमजान बेहद पाक माना गया है। इसे अल्लाह की रहमत और बरकत का महीना माना जाता है। चांद दिखने के साथ रमजान के महीने की शुरुआत होती है और चांद दिखने के साथ ही इसका समापन होता है। रमजान समापन के बाद ईद मनाई जाती है। रमजान के दौरान व्यक्ति अपनी आदतों, विचारों और मन को शुद्ध करता है और अल्लाह से अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए अधिक से अधिक नेक काम करता है। रमजान के महीने में रोजा रखना हर मुसलमान का फर्ज बताया गया है। रोजे के नियम काफी कठिन होते हैं, इसमें सूर्योदय के बाद से सूर्यास्त तक कुछ भी खाने और पीने की मनाही होती है। गर्मियों के दिनों में रोजा रखकर मुसलमान अल्लाह के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को जाहिर करता है।
सराय बशारत अली स्थित मस्जिद के इमाम मुफ्ती खालिद कासमी ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान नौवां महीना माना जाता है। इस महीने में हर नेकी का सवाब बढ़ा दिया जाता है। अगर इस महीने में रोजा रखकर इबादत की जाए तो रोजे की बरकत से बंदे की नेकियों में इजाफा होता और उसके गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।
उन्होंने बताया कि रमजान माह के तीन असरे हैं। पहला असरा पहले रमजान से लेकर दसवें रमजान तक रहता है, इसमें बंदों पर अल्लाह की रहमत बरसती है। दूसरा असरा 11 वें रमजान से 20 वें तक रहता है, इसमें अल्लाह अपने बंदों के गुनाह माफ करता है और तीसरा व आखिरी असरा 21 से लेकर 30 वें रमजान तक होता, इसमें जहन्नुम की आग से छुटकारा पाने के लिए दुआ करनी चाहिए। इस महीने का आखिरी अशरे में एक शब ए कद्र की रात आती है। जिसमें बंदों को रात में भी इबादत करनी चाहिए।
रमजान माह में पांचों वक्त की नमाज पाबंदी के साथ अदा करनी चाहिए। तरावीह जरूर पढ़े क्योंकि इसमें अल्लाह का कलाम सुना जाता है, तो इसे हम पूरे माह सुने। रमजान नेकी व बरकत का महीना है। इसलिए इन दिनों में जरूरतमंद व गरीब लोगों का ख्याल रखें।