हापुड़ – ज्येष्ठ अमावस्या के पावन अवसर पर गढ़मुक्तेश्वर की पवित्र तीर्थनगरी बृजघाट में आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सोमवार को दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा तट पर स्नान कर पुण्य अर्जित किया। गंगा स्नान का यह अवसर न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
ज्येष्ठ अमावस्या, जिसे बट अमावस्या के रूप में भी जाना जाता है, पर महिलाएं विशेष रूप से वटवृक्ष (बड़ के पेड़) की पूजा कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि व अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस दिन स्नान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
बृजघाट में रही श्रद्धालुओं की भारी भीड़
गंगा घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था। सूरज की पहली किरण के साथ ही बड़ी संख्या में लोग गंगा तट पर उमड़ पड़े और हर-हर गंगे के जयघोष के साथ आस्था की डुबकी लगाई। महिलाओं ने स्नान के उपरांत वटवृक्ष की पूजा अर्चना कर सांवली रेखाओं में रक्षा सूत्र बांधे और व्रत कथा सुनी।
प्रशासन ने की थी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद रहा। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस बल, होमगार्ड, पीएसी और जल पुलिस के जवानों को घाटों पर तैनात किया गया। नाविकों और गोताखोरों की विशेष व्यवस्था की गई ताकि जल में स्नान करते समय कोई अप्रिय घटना न हो। घाटों पर मेडिकल कैंप, शीतल पेयजल और नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किए गए।
धार्मिक आयोजन में दिखा अद्भुत समन्वय
तीर्थनगरी की गलियों और घाटों पर चारों ओर धूप, अगरबत्ती, घंटियों की ध्वनि और गंगा आरती की गूंज वातावरण को दिव्यता से भर रही थी। श्रद्धालु गंगा जल भरकर अपने घरों के लिए भी ले जाते नजर आए, जिसे वे पवित्र कार्यों में उपयोग करते हैं।
श्रद्धालुओं की भावनाएं
गंगा स्नान को आए श्रद्धालुओं ने बताया कि हर वर्ष वे इस दिन यहां पहुंचते हैं। बृजघाट में गंगा का बहाव शांत और वातावरण अत्यंत दिव्य है, जिससे मानसिक शांति और आत्मिक ऊर्जा की अनुभूति होती है। ज्येष्ठ अमावस्या पर बृजघाट का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रमाण है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का भी प्रतीक बन गया है। आस्था, सुरक्षा और व्यवस्था के इस समन्वय ने एक बार फिर यह साबित किया कि गढ़गंगा की महिमा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी पुरातन काल में थी।