जनपद हापुड़ में 600 करोड़ के नलकूप बिल घोटाले में शुरुआती जांच ही लापरवाही से भरी रही, जिस कारण जांच के दौरान जो फर्जीवाड़े से जुड़ा रिकॉर्ड जब्त होना था।
उसमें सैकड़ों बिल बुक वर्ष 2004 में 300 रसीद बुक नाले से बरामद हुई थी। यही कारण है कि जांच टीम लगातार रिकॉर्ड रूम खंगाल रही है, लेकिन घपले से जुड़े दस्तावेज उनके हाथ नहीं लग रहे हैं। अब निगम के अधिकारियों को उस समय चर्चा में रहे इस मामले के कुछ साक्ष्य मिले हैं।
दरअसल, नलकूप बिलों की जमा रसीद में फर्जीवाड़ा 1990 के दशक से पहले ही शुरू हो गया था। उस समय पूरा डाटा मैनुअल ही रखा जाता था, जिस कारण ऑडिट में अधिकारी आसानी से घपलों को नहीं पकड़ पाते थे। किसानों से संबंधित पटल के कर्मचारी और अधिकारी मिलकर बिल का पैसा जमा कराते गए, लेकिन यह पैसा राजस्व कोष में जमा नहीं किया गया।
वर्ष 2002 में इस घोटाले का खुलासा हुआ, तो जांच टीम गठित कर दी गई। जांच टीम को पूरा रिकॉर्ड सील कर जब्त करना चाहिए था। जिस रिकॉर्ड की जांच हो रही थी, घोटालेबाजों ने वर्ष 2004 में घपले से जुड़े अहम दस्तावेजों में रसीद बुक रिकॉर्ड अतरपुरा बिजलीघर परिसर के बाहर नाले में बहा दी गईं।
उस दौरान अधिकारी और पटल के लिपिकों में एक दूसरे के ऊपर घपले बाजी थोंपने की होड़ भी लग गई थी। वर्ष 2004 के साक्ष्यों के अनुसार तत्कालीन अधिशासी अभियंता राजस्व आरके सिंह व अधिशासी अभियंता बीके जैन ने सैकड़ों रसीद की बिल बुक नाले से निकलवाई थी, जिसमें महज 300 रसीद बुक ही नाले से निकाली जा सकी थी। जबकि बहुत सी रसीदें नाले में आगे बह गई।
ऐसे में घपला करने वाले सुबूतों को नष्ट करने में सफल हो गए, जिस कारण 20 साल बाद भी यह जांच अधर में ही अटकी है और घपले की राशि बढ़कर 600 करोड़ पहुंच गई है। मजे की बात यह है कि किसान पूरा बिल जमा कर रहे हैं, फिर भी उनके खातों में यह घपले की बकायेदारी जुड़कर आ रही है।
अधीक्षण अभियंता यूके सिंह- ने बताया की नलकूप बिल घोटाले से जुड़े मामले की उच्चस्तरीय टीम जांच कर रही है। टीम समय समय पर पुराने रिकॉर्ड की जांच करने आती है। किसानों की समस्याओं को उच्चाधिकारियों तक लगातार पहुंचाया जा रहा है।