होली का त्योहार नजदीक आ रहा है। सात मार्च को होली तथा आठ मार्च को दुल्हैंड़ी का त्योहार मनाया जाएगा। त्योहार माने के लिए अभी से लोग तैयारियों में जुट गए।
जनपद हापुड़ में 20 लाख आबादी वाले तीन तहसील के जनपद में 273 गांव है। इनमे रोजाना 3 से 4 लाख लीटर दूध की आवश्यकता होनी चाहिए। जबकि जनपद से 6 दुग्ध प्लांटों पर 10 लाख लीटर से अधिक की खपत की जा रही है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले में लगभग 60 से 65 हजार पशु दुधारू हैं, जिनका दूध करीब 3 से 4 लाख लीटर के करीब हो सकता है। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 10 लाख लीटर दूध कहां से आ रहा है। ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि आपूर्ति पूरी करने के लिए बढ़ी मात्रा में सिंथेटिक व मिलावटी दूध खपाया जाता है।
पशु पालन विभाग के रिकार्ड के अनुसार हापुड़ जनपद में 1 लाख 215 गोवंश तथा 2 लाख 46 हजार 786 भैंस आदि है। जिनके आंकड़ों के अनुसार कुल पशुओं का 26 प्रतिशत पशु दुधारू होता है।
अगर देखा जाए तो जनपद में लगभग 60 से 65 हजार पशु दूध देते हैं। दुग्ध विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार एक भैंस का औसत 6 लीटर दूध का होता है। यानि कि जनपद में अगर सरकारी विभागों के आंकड़ों से अनुमान लगाया जाए तो करीब 3 से 4 लाख लीटर दूध दुधारू पशु दे रहे हैं।
लेकिन जनपद में खपत 10 लाख लीटर से ज्यादा है। जबकि त्योहारी सीजन में यहीं डिमांड 25 फीसदी तक बढ़ जाती है। ऐसे में बाजार में मिलावटी दूध का आना आश्चर्य की बात नहीं है। जिससे बचने के लिए एक मात्र माध्यम जागरूकता है।
होली के त्योहार पर मिठाई की मांग ज्यादा होती है। जोकि दूध से तैयार होती है। अब जब मांग के अनुरूप दूध ही नहीं है तो बाजार में सजी मिठाईयां कैसे तैयार हो रही है यह समझना मुश्किल नहीं हैं।
डीएम-प्रेरणा शर्मा ने बताया कि होली के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा एवं औषधी प्रशासन विभाग को अलर्ट कर दिया है। जिलेवासियों को शुद्ध खाद्य व पेय पदार्थ उपलब्ध कराना जिला प्रशासन की प्राथमिकता है। इसमें किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
भले ही त्योहार के पास आकर विभाग अपनी खाना पूर्ति करने के लिए कुछ स्थानों पर छापे मारकर कार्रवाई कर इतिश्री कर देता हो। परंतु अगर देखा जाए तो खपत तथा बिक्री के आंकड़ों के अलावा जो जिले में मावा आदि और मिठाई तैयार की जा रही हैं।
उसके लिए कई लाख लीटर दूध बनाया जा रहा है। बताया जाता है कि 40 मिनट में सिंथेटिक दूध तैयार हो जाता है। पिछले कई सालों के दौरान गांवों में सिंथेटिक दूध और मावा भी पकड़ा गया था।
होली, दीपावली, रक्षाबंधन समेत अन्य त्योहारी सीजन में खाद्य सुरक्षा एवं औषधी प्रशासन विभाग की टीम सैंपलिग करती है। इन सैंपलों की रिपोर्ट आने के बाद खुलासा होता है कि जनपद के लोगों द्वारा त्योहार पर खाई जाने वाली मिठाई के 60 फीसदी नमूने फेल थे। इसके बाद भी मिलावटखोर धड़ल्ले से उत्पादों में मिलावट कर रहे हैं।
घी बनाओ, पनीर बनाओ या फिर दही जमाओ। इन सबके लिए जो चीज सबसे जरूरी है वो है दूध। और दूध ही असली नहीं मिल पा रहा। नकली दूध में डिटर्जेंट, यूरिया, स्टार्च, दीवार रंगने वाला सफेद पेंट, रिफाइंड तेल और ग्लूकोज मिलाया जाता। इससे किडनी फेल, कैंसर, लिवर सिरोसिस, स्ट्रोक जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं।
ऐसे करें मिलावटी की पहचान- यूरिया 5 एमएल कच्चे दूध में पैराडाइमिथाइल एमिने बैन्जालिडहाइड मिलाएं। यदि दूध गहरे पील रंग का हो जाए तो यूरिया की मिलावट की है।
-डिटर्जेंट 5 एमएल दूध में दो बूंद ब्रोमोकिसाल परपल घोल डालें। रंग नीला हुआ तो मिलावटी है। पानी-दूध कांच की बोतल में जोर से हिलाएं करें, डिटर्जेंट होगा तो गाढ़ा झाग बन जाएगा।
– स्टार्च का पता लगाने के लिए 5 एमएल दूध में आयोडिन की पांच बूंद डाले। यदि दूध का रंग नीला हो जाता है तो उसमें स्टार्च मिलाया गया है।