हापुड़ जिले के सरकारी अस्पतालों में लिवर संबंधी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आवश्यक दवाओं की कमी के कारण मरीज मायूसी के साथ लौटने को मजबूर हैं। फैटी लिवर, बढ़े हुए लीवर एंजाइम और सिरोसिस के शिकार हर पाँचवां मरीज सरकारी सुविधा के अभाव में निजी इलाज या मेरठ मेडिकल कॉलेज रेफरेंस पर आश्रित हो रहा है।
प्रमुख पड़ाव:
- सरकारी अस्पतालों में एलोपैथिक लिवर दवाइयाँ अनुपलब्ध, केवल कुछ आयुर्वेदिक दवाएँ उपलब्ध हैं और वे भी अपर्याप्त।
- मेरठ मेडिकल रेफर किए जाने वाले लिवर मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा।
- पैरासिटामॉल और एंटी-अलर्जिक दवाओं की मांग भी बढ़ी है।
कारण व प्रभाव:
- एल्कोहल सेवन, असंतुलित खानपान और जीर्ण कमज़ोरी से फैटी लिवर तथा लीवर सिरोसिस के मामलों में उछाल।
- सरकारी ओपीडी में आने वाले प्रत्येक पाँचवें मरीज की लिवर रिपोर्ट असामान्य पाई जा रही है।
- निजी अस्पतालों में इलाज बेहद महँगा, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार सही उपचार से वंचित हो रहे हैं।
चिकित्सकों की प्रतिक्रिया:
- सीएचसी ओपीडी में पहुंचे एक लिवर फेलियर मरीज को देखा; फिजिशियन डॉ. अशरफ़ अली ने बताया कि “रिपोर्ट में लिवर का 70% तक काम बंद पाया गया। सरकारी सुविधाओं में दवाओं की अनुपस्थिति परेशानी बढ़ा रही है।”
- सीएमओ डॉ. सुनील त्यागी ने कहा, “कुछ आयुर्वेदिक एवं सीमित एलोपैथिक दवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। जहां कमी है, वहाँ निरीक्षण कर आपूर्ति दुरुस्त की जाएगी।”
संक्षिप्त तथ्य
- लाभार्थी मरीजों में से लगभग 20% की लिवर रिपोर्ट अनुकूल नहीं।
- सरकारी अस्पतालों कोें अभी तक केवल 30 टिकटों की आयुर्वेदिक दवाइयाँ मिली हैं, एलोपैथिक स्टॉक नाममात्र।
- पिछले एक माह में मेरठ रेफर हुई मरीजों की संख्या 120 से बढ़कर 160 हो गई।