हापुड़ जिले के सरकारी अस्पतालों में औसतन हर 50 प्रसव पर एक महिला का ऑपरेशन हो रहा है। वहीं, निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा और भी चौंकाने वाला है, निजी अस्पतालों में भर्ती होने वाली हर छठी गर्भवती का ऑपरेशन से प्रसव हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि निजी अस्पतालों में ऑपरेशन कराना मजबूरी है या फिर प्रसव की जल्दबाजी। चार साल के आंकड़े चौकाने वाले हैं।
सरकार की और से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधर करने की हर संभव कोशिश की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग में सैकड़ों आशाएं, एएनएम हैं। गर्भवतियों के प्रसव पर आशाओं को प्रोत्साहन राशि भी मिलती है। जिले में आठ सीएचसी, दो पीएचसी और एक जिला अस्पताल है। जिनमें नियुक्त चिकित्सकों के वेतन पर हर महीने करोड़ों खर्च होते हैं। लेकिन बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं नहीं मिल रही हैं।
करोड़ों की लागत से बने सरकारी अस्पतालों में महिला रोग एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की कमी है। जिसके कारण गर्भवतियों को यहां बेहतर सुविधा नहीं मिलती।यही कारण है कि अब सरकारी अस्पतालों से पांच से दस गुना गर्भवती महिलाएं निजी अस्पतालों में प्रसव करा रही हैं। समय-समय पर स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा भी महिलाओं को निजी अस्पतालों में भेजेने की शिकायतें मिलती रहती हैं।
सरकारी में निजी अस्पतालों के मुकाबले पांच गुना सामान्य प्रसव और 40 गुना कम सिजेरियन हो रहे हैं। निजी अस्पतालों में प्रसवों के आंकड़ों पर गौर करें तो यह चौकाने वाले हैं, अस्पताल में भर्ती होने वाली हर छह से आठवीं महिला का सिजेरियन प्रसव कराया जा रहा है। जिसके बदले 50 हजार से एक लाख रुपये तक शुल्क लिया जाता है। जबकि सामान्य प्रसव का खर्च 20 से 30 हजार रुपये आता है। सरकारी अस्पतालों में औसतन हर 50 प्रसव पर एक महिला का ऑपरेशन हो रहा है।
सीएमओ डॉ. सुनील त्यागी- ने बताया की अस्पतालों को सुरक्षित प्रसव का लक्ष्य दिया जाता है। जिसे पूरा नहीं करने वालों को नोटिस भी जारी किया जा रहा है। प्राइवेट अस्पतालों की संख्या अधिक है, इसलिए प्रसव वहां अधिक होते हैं।