हापुड़ जिला अस्पताल में चार साल से वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं, जबकि गंभीर रोगियों को संसाधन होते हुए भी रेफर किया जा रहा है। शासन से स्टाफ नहीं मिलने के कारण वेंटिलेटर कमरे में कैद हैं, कई अन्य सुविधाएं भी चालू नहीं हो सकी हैं। जिस कारण मरीजों को इलाज की सुविधा नहीं मिल रही है और गंभीर मरीजों को हायर सेंटर के लिए रेफर करना पड़ रहा है। मरीजों को निजी अस्पतालों में लाखों के बिल भरने पड़ रहे हैं।
गंभीर मरीजों को जिले में इलाज की सुविधा मिले इसके लिएदस्तोई रोड पर 33 करोड़ की लागत से जिला अस्पताल बना है। कोरोना महामारी के दौरान अस्पताल को 13 वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए थे। साथ ही दो ऑक्सीजन प्लांट भी लगाए गए। लेकिन मशीनों को चलाने के लिए स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो सकी। स्टाफ ना मिलने पर वेंटिलेटर की सुविधा भी चालू नहीं हो सकी हैं। मॉकड्रिल के दौरान ऑक्सीजन प्लांट चलाकर देख लिए जाते हैं, लेकिन मरीजों को इनका कोई लाभ नहीं दिया जाता।
वेंटिलेटर वर्ष 2020 से ही एक कमरे में कैद हैं, क्योंकि इन्हें चलाने के लिए कुशल स्टाफ की जरूरत होती है। जिसकी अभी तक शासन से नियुक्ति ही नहीं हो सकी। जिला अस्पताल समेत सीएचसी में आने वाले गंभीर रोगियों को तुरंत ही हायर सेंटर रेफर किया जाता है। सिर्फ बुखार, जुकाम या कम जोखिम वाले मरीजों को ही भर्ती किया जाता है।
निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर पर मरीज को रखने पर एक दिन का 50 हजार से भी ज्यादा बिल बनाया जाता है। गरीब मरीजों को पैसों के अभाव में या तो जान से हाथ धोना पड़ता है या फिर सरकारी हायर सेंटरों की वेटिंग में समय पूरा करना पड़ता है।
सीएमएस डॉ. प्रदीप मित्तल- ने बताया की वेंटिलेटर चलाने के लिए स्टाफ नहीं है, शासन में पत्राचार किया गया है। मरीजों को आवश्यक सुविधाएं दी जा रही हैं, स्टाफ मिलने पर वेंटिलेटर की सुविधा भी चालू हो जाएगी।