हापुड़ में दानेदार यूरिया और डीएपी का विकल्प (तरल उर्वरक) किसानों को रास नहीं आ रहा। दो साल में समितियां सिर्फ 22631 बोतल नैनो यूरिया और 10801 बोतल डीएपी बेच सकी हैं। जबकि इन दो साल में दानेदार उर्वरकों के आठ लाख से अधिक कट्टे किसानों ने खरीदें हैं।
किसानों के बीच नैनो यूरिया और डीएपी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। खरीफ और रबी फसलों की बुवाई में यूरिया, डीएपी, एनपीके की जरूरत पड़ती है। पिछले कुछ साल से नैनो यूरिया और डीएपी का प्रयोग करने पर जोर दिया जा रहा है। इसका प्रयोग स्प्रे के जरिए होता है, किसान अपनी मर्जी से कम ही तरल उर्वरक लेते हैं। लेकिन अभी भी किसान दानेदार उर्वरकों को ही पसंद कर रहे हैं। इस साल रबी फसलों की बुवाई के दौरान दानेदार उर्वरकों की कमी रही, जिसके कारण तरल उर्वरकों की बिक्री अधिक हुई। लेकिन आंकड़ा अभी भी संतोषजनक नहीं है। अधिकारी इन उर्वरकों का परिणाम अच्छा बताते हैं, जबकि किसान कहते हैं कि स्प्रे से छिड़काव पर नैनो यूरिया और डीएपी संतोषजनक असर नहीं दिखाते हैं।
अक्तूबर और नवंबर महीने में आलू और गेहूं की बुवाई के चलते दानेदार डीएपी की किल्लत समितियों पर रही। जिस कारण इन दो महीने में सर्वाधिक 8100 बोतल नैनो डीएपी की बिक्री हुई। जोकि पिछले दो सालों में बिकी मात्रा से भी पांच गुना है। हालांकि नैनो यूरिया की बिक्री पिछले सालों के मुकाबले घटी है।
एआर कोऑपरेटिव प्रेम शंकर- ने बताया की फसलों में नैनो यूरिया और नैनो डीएपी का असर अधिक होता है। क्योंकि स्प्रे के जरिए यह उर्वरक सीधे फसलों की पत्तियों को मिलता है, जबकि दानेदार यूरिया और डीएपी जमीन पर गिरता है। जिसमें बहुत सी मात्रा खराब हो जाती है। किसानों में तरल उर्वरकों का रुझान बढ़ रहा है।