हापुड़ में गन्ने की फसल पर चोटी बेधक का रोग लग गया है। कई गांवों में इसका असर अधिक है। गन्ना सर्वेक्षण के दौरान डीसीओ ने विभिन्न गांवों में जाकर, किसानों को इस रोग से बचाव के तरीके बताए। साथ ही खेत में जाकर कीट, रोग का जायजा लिया।
जिला गन्ना अधिकारी सना आफरीन खान ने गांव डहेरा कुटी, भैना में निरीक्षण किया। कीट की पहचान कराते हुए कहा कि इस कीट की मादा शलभ चांदी जैसे सफेद रंग की होती है और पीछे की ओर नारंगी रंग का रोंयेदार संरचना पाई जाती है जो रात्रि में गन्ने की पत्तियों के मध्य शिरा के पास 75 से 250 अंडे समूह के रूप में देती है।
इस कीट पर नियंत्रण पाने के लिए किसान इमिडाक्लोरोप्रिड (40 फीसदी) रसायन को एक मिली लीटर/लीटर पानी के साथ घोल बनाकर थोड़ा सा शैंपू मिलाकर छिड़काव करने से पौधे के ऊपर पाए जाने वाले अंडे/तितलियां नष्ट हो जाती हैं। अधिक प्रभावित फसल के लिए क्लोरेनट्रेनिलिप्रोल (कोराजन/सीटीजन) 18.5एचपी 150 एमएल 400 लीटर पानी में घोल मिलाकर/एकड़ की दर से गन्नों की जड़ों के पास ड्रेचिंग करें।
चोटी बेधक कीट :
चोटी बेधक कीट को आमतौर पर कंसुवा, कन्फ्ररहा, गोफ का सूखना, सुंडी का लगना आदि नामों से जाना जाता है। इस कीट का प्रकोप सबसे पहले गन्ने की फसल की पत्तियों पर होता है। प्रारंभिक अवस्था में इस रोग से प्रभावित गन्ने की फसल की पत्तियों पर छर्रे जैसे कई चित्र दिखाई देते हैं, इससे पत्तियों का विकास अवरूद्ध हो जाता है। प्रभावित पौधे की अंतिम अवस्था में गन्ने की बढ़वार रूक जाती है जिससे फसल को नुकसान होता है। इस कीट को पहली पीढ़ी पर खत्म कर देना चाहिए नहीं तो यह दूसरी पीढ़ी में जाने पर कीट का लार्वा प्यूपा के रूप में बदल जाता है जिस पर कीटनाशकों का भी असर नहीं होता है। वहीं कुछ दिनों बाद यही प्यूपा परिपक्व होने पर इसमें से तितलियां बाहर निकलने लग जाती है जो गन्ने की पत्तियों पर अंडे देती है और अंडे से फिर लार्वा निकलकर गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं और यह क्रम चलता रहता है और फसल को भारी नुकसान होता है।