जनपद हापुड़ में नलकूप बिल घोटाले में जिले के 14 हजार किसानों को राहत मिलती नजर नहीं आ रही है।
दो दशक तक चली जांच भी पूरी हो गई है, लेकिन निष्कर्ष अब भी अधूरा है। अब बीओडी या कैबिनेट से ही इस मामले में राहत मिलने की उम्मीद है।
बिल घोटाले की पटकथा वर्ष 1985 से ही शुरू हो गई थी, क्योंकि उस समय सब रसीदें मैनुअल ही कटती थी। हर महीने के हिसाब से एक लेजर बनता था और एक महीने में एक चालान बुक भी मिलती थी।
उस दौर में रसीदों को फर्जी तरीके से काटकर कुछ कर्मचारी अपनी जेब भरते रहें। किसानों की किताबों में तब एंट्री होती थी, किसान एंट्री के बाद संतुष्ट हो जाते थे कि उनका बिल जमा हो गया है।
मामला वर्ष 2004 में खुला तो कई अधिकारियों और कर्मचारियों पर गाज गिरी। कई संस्थाओं ने इस मामले की जांच की, लेकिन निष्कर्ष नहीं निकल सका।
वर्ष 2019 में तत्कालीन डीएम अदिति सिंह ने जांच शुरू कराई। जांच के दौरान रिकॉर्ड रूम खंगाले गए। बताया गया है कि करीब 19 सालों के रिकॉर्ड से 60 लेजर और 70 चालान बुक गायब हैं। निगम के ही एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर यह आंकड़े साझा किए हैं।
घोटाले की राशि 600 करोड़ से अधिक हो गई है। इतनी राशि को संशोधित करना या खत्म करना किसी स्थानीय अधिकारी के बस की बात नहीं है। ऊर्जा निगम के अधिकारी मानते हैं कि इस राशि को बिलों से हटाने के लिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या कैबिनेट को ही फैसला लेना होगा।
अधीक्षण अभियंता-यूके सिंह ने बताया कि नलकूप बिलों से जुड़े मामले में बीते दिनों जांच हुई थी। मेरठ से आई टीम ने जांच की थी। पूरा मामला उच्चस्तरीय है, हालांकि समय-समय पर किसानों की समस्याओं से उच्चाधिकारियों को अवगत कराया जाता रहता है।